Wednesday 28 May 2014

कोयल - विलुप्त पक्षी ( संरक्षण आवश्यकता )

कोयल - विलुप्त पक्षी  (  संरक्षण आवश्यकता )

कोयल एक पक्षी है। कोयल कोकिल ‘‘ कुक्कू कुल’’ का पक्षी है । जिसका वैज्ञानिक नाम ‘‘ यूडाइने मिस स्कोलोपेकस स्कोलोपकेस ’’ है ।  नर कोयल नीलापन लिए काला होता है तो मादा तीतर की तरह धब्बेदार चितकबरी होती है । नर कोयल ही गाता है उसकी आंखें लाल व पंख पीछे की ओर लम्बे होते हैं ।  नीड़ परजीविता इस कुल के पक्षियों  की विशेष नेमत है यानि कि ये घोसलां नही बनाती है । ये दूसरे पक्षियों विशेषकर कौए के घौंसले के अंडों को गिरा कर अपना अंडा उसमें रख देती है । स्वभाव से संकोचीं यह पक्षी कभी किसी के सामने पड़ने  से कतरता है । इस वजह से उनका प्रिय आवास या तो आम के पेड़ है या फिर मौलश्री के पेड़ अथवा कुछ इसी तरह के सहाबहार घने वृक्ष जिसमें ये अपने आपको छिपाये हुए तान छेड़ता   है । कोयल की आवाज बहुत मीठी होती है जितनी मीठी उसकी आवाज होती है उससे कहीं अधिक वह चालाक होती है । अपनी इसी चालाकी से व कौवों को बेवकूफ बनाती है । अपने अण्डों को सेने का कार्य ।
कौए व कोयल एक ही मौसम में अण्डे देते हैं । कौए और कोयल के अण्डें लगभग एक समान होते हैं उनमें फर्क करना बहुत कठिन होता है पता ही नहीं चलता है कि कौन सा अण्डा कोयल का है और कौन सा कौए का । इसी का फायदा उठा कर कोयल अपने अण्डे कौए के घौंसले में रख देती है कौए उन अण्डों को अपने समझ कर सेते हैं वैसे होता तो कौए भी बहुत चालाक पर कोयल उन्हें धोका देने में सफल रहती है । कौए के घौसलें में अपने अण्डें रखते समय कोयल बहुत सावधानी बरतती है जब मादा कोयल ने अंडे रखने होते हैं तब नर कोयल कौओ को चिढ़ाता है कौए चिढ़ कर उसका पीछा करते हैं  पीछा करते कौए अपने घौसले से दूर चले जाते हैं तब मादा कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है । कौओं को शक न हो इसलिए वह अपने जितने अण्डें रखती है कौओं के उतने ही अण्डें घौंसले से उठा कर दूर फेंक आती है । फिर एक विशेष आवाज निकालकर नर कौयल को काम पूरा होने की सूचना देती है । तब नर पीछा करते कौओं को चकमा देकर गायब हो जाता है । फिर कौए कोयल के अंडों को अपने अंडे समझकर सेते रहते हैं । अंडों में से जब बच्चे निकल आते हैं तो  कौए उन्हें  अपने बच्चे समझकर पालते हैं । बड़े होने पर कोयल के बच्चे को चकमा देकर बच निकलने में सफल हो जाते हैं । धीरे धीरे कुहू कुहू बीते समय की बात हो चली है एवं नुकसान की बड़ी वजह शहरी इलाकों में बेहततीब से लगाए जाने वाले टाबर जिनसे निकलने वाली घातक तरंगों और इलेक्टान ने कोयल की प्रजनन क्षमता को सीधे तौर पर प्रभावित किया है । इससे प्रजनन में कमी आई है अब कोयल दिखना बंद हो गई है । इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन ने भी फुदकती गायिका को नुकसान पहुंचाने में कसर नहीं छोड़ी है ।
आगन में लगे वृक्ष पर पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करें तो सुबह -शाम पक्षियों की कलरव सुनाई देगी । आज हम सभी ने इस विषय में सोचना है और आगे की योजना बना कर वृक्ष लगाना, पक्षियों के प्रति रूक्षान को बढ़ावा देना होगा ताकि हम अपने बच्चों को बता सकें की कोयल ऐसी होती है ।
कहाँ गई कोयल की कुहू -कुहू , अब तो आम पर बौर भी आ गये पर आई न आवाज तुम्हारी प्यारी कोयल । कहाँ खो गई हो तुम मदवाली कोयल । दिनों दिन कम होती पक्षियों की चहचहाट सभी के लिए चिंता का विषय बन चुकी है । इन दिनों अक्सर दिखाई देने वाली कोयल नजर नहीं आना । कभी पेड़ों की डालियों पर विशेषकर आम की, पर कभी कभी झुरमुट के पीछे, तो कभी कभी छत पर आकर कुुुहू कुहू करने वाली कोयल अब शहरी इलाके में न के बराबर बची हैं  पर्यावरणविद मानते हैं कोयल का नजर नहीं आना इतिहास के एक अध्याय पर पर्दा डल जाने की तरह ही होगा । 







2 comments: