Saturday 2 August 2014

कुबेर - अपरिसीम धन और नवनिधियों के स्वामी

कुबेर - अपरिसीम धन और नवनिधियों के स्वामी
















कुबेर धन के अधिपति यानि धन के राजा हैं । पृथ्वीलोक की समस्त धन सम्पदा का एकमात्र उन्हें ही स्वामी बनाया गया है । कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं । कुबेर का निवास वटवृक्ष पर बताया गया है । ऐसे वृक्ष घर-आंगन में नहीं होते, गांव के केन्द्र में भी नहीं होते, वे अधिकतर गांव के बाहर या बियाबान में होते हैं । उन्हें धन का घड़ा लिए कल्पित किया गया है । कहाँ  लक्ष्मी के धन की मनोरमा, कल्पना, धान की बालियां और पिटारी आदि, कंहा कुबेर का महाजनी रूप । दोनों में कहीं कोई समानता नहीं है । कुबेर का धन अत्यन्त भौतिक और स्थूल है । कुबेर के संबंध में प्रचलित है कि उनके तीन पैर और आठ दांत है । अपनी कुरूपता क लिए वे अति प्रसिद्ध हैं । 















उनकी जो मूर्तियां पाई जाती हैं वे भी अधिकतर स्थूल और बैडोल हैं । शतपथ ब्राहमण में तो इन्हें राक्षस ही कहा गया है । वहां ये चोरों, लुटेरों और ठगों के सरदार के रूप में वर्णित हैं । कुबेर को राक्षस के अलावा कहीं कहीं यक्ष भी कहा गया है । यक्ष धन का रक्षक ही होता है, उसे भोगता नहीं । कुबेर का जो दिक्पाल वाला रूप है, वह भी उसके रक्षक और प्रहरी की ही भूमिका को स्पष्ट करता है । पुराने मंदिरों के बाहरी भागों में कुबेर की मूर्तियों पाए जाने का रहस्य भी यही है कि वे मंदिरों के धन के रक्षक के रूप में कल्पित और स्वीकृत हैं । कौटिल्य ने भी खजानों में रक्षक के रूप् में कुबेर की मूर्ति रखने के बारे में लिखा   है । लक्ष्मी के धन के साथ मंगल का भाव जुड़ा हुआ है । वे धन अपने पास रखे नहीं रहतीं, बल्कि दूसरों को देती हैं । कुबेर का धन खजाने के रूप में कहीं गड़ा या स्थिर पड़ा रहता है ।
















.महर्षि पुलस्त्य के पुत्र महामुनि विश्रवा ने भारद्वाज जी की कन्या इलविला का पाणि ग्रहण किया । उसी से कुबेर की उत्पत्ति हुई । भगवान ब्रहमा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया । ये तप करे  उत्त्तर दिशा के लोकपाल हुए । कैलाश के समीप इनकी अलकापुरी है । श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर  योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं । इनके पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं । इनके अनुचर यक्ष निरन्तर इनकी सेवा करते हैं । पृथ्वी में जितना कोष है, सबके अधिपति कुबेर हैं । इनकी कृपा से ही मनुष्य को भू गर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है ।














वैदिक काल में कुबेर को अंधेरे का देवता के रूप में संदर्भित किया गया है । यही नहीं उन्हें सभी बुरे प्राणियों का स्वामी भी कहा गया है राजाधिराज कुबेर विश्व के अपरिसीम धन और नवनिधियों के स्वामी हैं । इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है । जब भी इनकी मूर्ति, चित्र अथवा यंत्र स्थापित करें हमेशा उसे उत्तर दिशा में स्थापित करना चाहिए । कुबेर पूजा से अकस्मात धन प्राप्ति का योग बनता है । इनकी कृपा से मनुष्य को भूगर्भ स्थित निधि प्राप्त होती है ।  कुबेर की मूर्ति कोषागार में स्थापित की जानी चाहिए । कुबेर कर निवास वटवृक्ष में होता है । लक्ष्मी के साथ हमेशा कुबेर का पूजन करें । कहते हैं कि लक्ष्मी आती अपनी मर्जी से है पर जाती कुबेर की मर्जी से है ।
कुबेर - अकस्मात धन लाभ देता है कुबेर मंत्र । कुबेर मंत्र को दक्षिण की ओर मुख करके ही सिद्ध किया जाता  है ।मंत्र  -  ऊँ श्रीं, ऊँ ह्नीं श्रीं, ऊँ ह्नीं श्रीं, क्लीं  वित्ते श्वरायः नमः ।










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