Monday 13 October 2014

शक्तिपीठ की पौराणिक कथा

क्तिपीठ की पौराणिक कथा









शिव  भगवान ही केवल एक ऐसे भगवान हैं जिन्होंने विवाह नहीं किया था और वे एक तपस्वी की तरह रहते थे भगवान शिव का भी एक आदर्श  साथी हो इसलिए आदि शक्ति ने मानव अवतार लिया तथा राजा दक्ष की पुत्री के रूप में सती राजकुमारी ने नाम से जन्म लिया दक्ष भगवान ब्रहमा के पुत्र थे और उन्हें भगवान शिव की जीवन शैली बिलकुल ही पसंद नहीं थी सती ने घोर तपस्या की और दक्ष की इच्छा कि विरूद्ध भगवान शिव के साथ विवाह कर लिया  



फिर सती अपने पिता की स्वीकृति के लिए तड़पती रही इसके साथ ही दक्ष ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल  यज्ञ का आयोजन किया और जानबूझ कर भगवान शिव और सती को आंमत्रित नहीं किया पर सती शिव की सहमति के बिना ही यज्ञ में शामिल  होने पहुंची जब सती दक्ष के महल में पहुंची तो उनके साथ बिन बुलाये मेहमान का व्यवहार किया गया यज्ञ में सती की उपस्थिति  में  भगवान  शिव  का अपमान करने का पाप किया सती को अपने पिता की अज्ञानता और अंहकार से बहुत दुख पहुंचा  



सती ने दक्ष के इस काम से दुखी होकर यज्ञ के अनुष्ठान की आग में खुद को समर्पित कर दिया और इस नष्वर शरीर को छोड़ दिया जब यह समाचार शिव तक पहुंचा तो वे गुस्से से पागल जैसे हो गये और यज्ञ अनुष्ठान वेदी से सती को निकाल का कंधें पर सती के शरीर को उठाया और विनाश  , तांडव नृत्य  प्रदर्शन शुरू  कर दिया जिससे पूरे ब्रहमाण्ड की स्थिरता के ऊपर खतरा मंडराने लगा भगवान विष्णु ने मानव सभ्यता को बचाने के लिए सुदर्षन चक्र से सती के शरीर के  कई टुकड़े कर दिये जब भगवान शिव  सती को लेकर भारत के विभिन्न स्थानों से गुजर रहे थे सती के शरीर  के 52 टुकड़े पूरे देश में जहां जहां गिरे वह स्थान पवित्र भूमि होकर  शक्ति पीठों के रूप में जाना जाने लगा


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